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सिनेमा चलचित्र निबंध | Cinema Movie Essay

सिनेमा चलचित्र निबंध

सिनेमा चलचित्र निबंध में प्राचीन काल से लेकर अब तक मनुष्य ने अपने शारीरिक और मानसिक थकान और ऊब को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के साधनों को तैयार किया है.


प्राचीन काल में मनुष्य कथा, वार्ता, खेल कूद और नाच गाने आदि के द्वारा अपने तन और मन की थकान और ऊब को शांत किया करता था. धीरे-धीरे युग का परिवर्तन हुआ और मनुष्य के प्राचीन मनोरंजन और विनोद के साधनों में बढ़ोत्तरी हुई.


आज विज्ञान के बढ़ते-बढ़ते प्रभाव के फलस्वरूप मनोरंजन के क्षेत्र में प्राचीन काल की अपेक्षा कई गुना वृद्धि हुई. पत्र, पत्रिकाए, नाटक, ग्रामोफोन, रेडियो, दूरदर्शन, टेपरिकोडर, वी.सी.आर, वी.डी.ओ, फोटो कैमरा, वायरलेस, टेलीफोन सहित ताश, शतरंज, नौकायन, पिकनिक, टेबल टेनिस, फ़ुटबाल, वालीवाल, हॉकी, क्रिकेट सहित अनेक प्रकार की कलाएँ और प्रदर्शनों ने मानव द्वारा मनोरंजन हेतु आविष्कृत चौसठ कलाओं में संवृद्धि की है. दुसरे शब्दों में कहना कि पूर्वकालीन मनोरंजन के साधन यथा, कथा वार्ता, वाद विवाद, कविता, संगीत, वादन, गोष्ठी, सभा या प्रदर्शन तो अब भी मनोरंजनार्थ है ही, इनके साथ ही कुछ अत्याधिक और नयी तकनीक से बने हुए मनोरंजन भी हमारे लिए अधिक उपयोगी हो रहे है. इन्ही में से सिनेमा या चलचित्र भी हमारे मनोरंजन का बहुत बड़ा आधार है.


सिनेमा चलचित्र निबंध

सिनेमा चलचित्र निबंध

सिनेमा अंग्रेजी का मूल शब्द है जिसका हिंदी अनुवाद चलचित्र है अर्थात चलते हुए चित्र, आज बिज्ञान ने जितने भी हमें मनोरंजन के विभिन्न स्वरूप प्रदान किये है उनमें सिनेमा की लोकप्रियता बहुत अधिक है. इससे हम अब तक संतुष्ट नही हुए है और शायद अभी और कुछ युगों तक हम इसी तरह से संतुष्ट नहीं हो पाएंगे तो कोई आश्चर्य नहीं. कहने का भाव यह कि सिनेमा से हमारी रूचि बढती ही जा रही है. इससे हमारा मन शायद ही कभी ऊब सके.


चलचित्र या सिनेमा का आविष्कार 19 वी शताब्दी में हुआ. इसके आविष्कार टॉमस एल्बा एडिसन अमेरिका निवासी थे जिन्होंने 1890 में इसको हमारे सामने प्रस्तुत किया था. पहले पहल सिनेमा लंदन में कुमेर नामक वेज्ञानिक द्वारा दिखाया गया था. भारत में चलचित्र दादा साहब फाल्के के द्वारा सन 1913 में बनाया गया. उसकी काफी प्रशंसा की गई. फिर इसके बाद न जाने आज तक कितने चलचित्र बने और कितनी धनराशि खर्च हुई यह कहना कठिन है. लेकिन यह तो ध्यान देने का विषय है कि भारत का स्थान चलचित्र की दिशा में अमेरिका के बाद दूसरा अवश्य है. कुछ समय बाद यह सर्वप्रथम हो जाए तो कोई आश्चर्य नही.


अब सिनेमा पूर्वापेक्षा रंगीन और आकर्षक हो गया है. इसका स्वरूप अब न केवल नैतिक ही रह गया है अपितु विविध भद्र और अभद्र सभी अंगो को स्पर्श का साधन सिद्ध होकर हमारे जीवन और दिलो दिमांग में भली भांति छा गया है. सिनेमा से हम इतने बंध गए है कि इससे हम किसी प्रकार मुक्त नहीं हो पाते है. हम भरपेट भोजन की चिंता न करके सिनेमा ही चिंता करते है. तन की एक-एक आवश्यकता को भूलकर या तिलांजलि देकर हम सिनेमा देखने से बाज नहीं आते है. इस प्रकार सिनेमा आज हमारे जीवन को दुष्प्रभावित कर रहा है. इसके अश्लील और दुरुपयोगी चित्र समाज के सभी वर्गों को विनाश की और लिए जा रहे है. अत: समाज के सभी वर्ग बच्चा, युवा और वृद्ध, शिक्षित और अशिक्षित सभी भ्रष्टता के शिकार होने से किसी प्रकार बच नही पा रहे है.


आवश्यकता इस बात की है कि हमें अच्छे चलचित्र को ही देखना चाहिए. बुरे चलचित्रों से दूर रहने की पूरी कोशिश करनी चाहिए. यही नहीं चरित्र को बर्बाद करने वाले चलचित्रों को विरोध करने में किसी प्रकार से संकोच नहीं करना चाहिए. यह भाव सबमें पैदा करना चाहिए कि चलचित्र हमारे सुख के लिए ही है.


 

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